Sunday, December 22, 2024
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दुर्गा चालीसा || Durga Chalisha ||

माँ दुर्गा को आदि शक्ति का दर्जा प्राप्त है और माँ दर्जा के नौ रूप हैं जिनकी पूजा अर्चना विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान की जाती है। दुर्गा चालीसा देवीदास जी द्वारा लिखी गई है। नवरात्रि एक प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। नौ दिन तक चलने वाली नवरात्री में मां दुर्गा के अलग अलग रूपों की पूजा कर भक्त माता को प्रसन्न करते हैं।

कहते हैं मां दुर्गा भक्तों के दुख को दूर कर देती हैं। ऐसे में नवरात्री में भक्त दिनभर व्रत रखते हैं और शाम को उनकी आरती उतार उन्‍हें भोग लगाते हैं। नवरात्री में आरती के साथ-साथ दुर्गा चालीसा का भी पाठ करते हैं। रोजाना दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आप के शरीर में सकारात्मक उर्जा का संचार होगा। इसके साथ ही दुश्मनों से निपटने और उन्हें हराने की क्षमता भी विकसित होती है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आप अपने परिवार को वित्तीय नुकसान, संकट और अलग-अलग प्रकार के दुखों से बचा सकते हैं।

नवरात्र के 9 दिनों में आदिशक्ति दुर्गा के 9 रूपों का भी पूजन किया जाता है। माता के इन 9 रूपों को ‘नवदुर्गा’ के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के 9 दिनों में मां दुर्गा के जिन 9 रूपों का पूजन किया जाता है, उनमें पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां सिद्धिदात्री की पूजन की जाती है।

दुर्गा चालीसा
दुर्गा चालीसा
आइए जानते हैं नवरात्रि के 9 दिनों में कैसे लगाएं मां को भोग, इसके साथ ही कौन-कौन से रंग के कपड़े धारण करना चाहिए-

पहला दिन, शैलपुत्री- नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है। मां की विधि पूर्वक पूजन के साथ ही उन्हें भोग में शुद्ध देसी घी चढ़ाना चाहिए, इससे मां सभी कष्टों और रोगों से मुक्ति देती हैं। मां शैलपुत्री की पूजा करने के लिए पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ होता है।

दूसरा दिन, ब्रह्मचारिणी- दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के साथ शक्कर, सफेद मिठाई, मिश्री और फलों का भोग लगाना चाहिए, इस भोग को देवी के चरणों में अर्पित करने के बाद परिवार के सदस्यों में बांटने से सभी की आयु में वृद्ध‍ि होती है। मां ब्रह्मचारिणी को हरा रंग प्रिय है।

तीसरा दिन, चंद्रघंटा- तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां को दूध से बनी मिठाइयों व खीर पसंद है, उन्हें इनका भोग लगाएं, इससे दुखों की मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती है। देवी मां को इस दिन ग्रे रंग काफी पसंद है।

चौथा दिन, कूष्मांडा- मां के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। उन्हें भोग में मालपुआ चढ़ाना अच्छा होता है,ऐसा करने से बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय शक्ति बढ़ती है। मां कूष्मांडा को नारंगी रंग प्रिय है।

पांचवा दिन, स्कंदमाता- मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए,ऐसा करने से आपको उत्तम स्वास्थ्य और निरोगी काया की प्राप्ति होती है। मां स्कंदमाता को सफेद रंग बेहद पसंद है।

छठा दिन, कात्यायनी- नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी को शहद का भोग चढ़ाना चाहिए, यह काफी शुभ होता है। इससे आपके जीवन में मधुरता आती है और आपकी आकर्षण शक्ति भी बढ़ती है। मां कात्यायनी को लाल रंग प्रिय है।

सातवां दिन, कालरात्रि- सातवे दिन मां कालरात्रि को गुड़ या उससे बनी मिठाइयों का भोग लगाएं इससे मां आपको संकटों से बाहर निकालेंगी, शोक से मुक्ति मिलती है एवं आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है।मां को नीला रंग काफी प्रिय है।

आठवां दिन, महागौरी- मां महागौरी को नारियल या उससे बनी मिठाइयों का भोग लगाएं, इससे मां खुश होती हैं, इससे संतान संबंधी सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है और देवी मां की कृपा प्राप्त होती है। मां को गुलाबी रंग काफी प्रिय है।

नौवां दिन, सिद्धिदात्री- आखिरी दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा होती है। इस दिन खासतौर पर मां को अनार और तिल का भोग लगाना चाहिए, इससे मृत्यु भय से राहत मिलती है, साथ ही अनहोनी होने की घटनाओं से बचाव भी होगा।मां को बैंगनी या जामुनी रंग बेहद प्रिय है।

दुर्गा चालीसा के पाठ करने की सही विधि

ज्योतिष विशेषज्ञों द्वारा दुर्गा चालीसा पाठ के कुछ विशेष नियमों के बारे में निम्न प्रकार से उल्लेख किया गया है:-

  • दुर्गा चालीसा का पाठ करने से पहले सूर्योदय से पूर्व स्नान करके साफ़ सुथरे वस्त्र धारण करें।
  • अब एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर, उस पर माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें।
  • सबसे पहले माता दुर्गा की फूल, रोली, धूप, दीप आदि से पूजा अर्चना करें।
  • पूजा के दौरान दुर्गा यंत्र का प्रयोग आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
  • अब दुर्गा चालीसा का पाठ शुरू करें।

|| दुर्गा चालीसा ||


नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो अम्बे दुःख हरनी।
अर्थ: सभी को ख़ुशी और हर्ष प्रदान करने वाले माता दुर्गा आपको प्रणाम। सभी के दुखों को हरने वाली अम्बे माँ आपको प्रणाम।

निराकार है ज्योति तुम्हारी, तिहं लोक फैली उजियारी।
अर्थ: हे माँ आपकी ज्योति निराकार और असीम है। इससे तीनों लोकों में उजियारा होता है।

शशि ललाट मुख महाविशाला, नेत्र लाल भृकुटी विकराला।
अर्थ: हे माँ आपका विशाल मुख चंद्रमा की भांति चमक रहा है, आपके नेत्र लाल और भौवें विकराल हैं।

रूप मातु को अधिक सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावे।
अर्थ: आपकी नजर सबको मोहित करती हैं और आपके दर्शन मात्र से हर्ष की अनुभूति होती है।

तुम संसार शक्ति लै कीना, पालन हेतु अन्न धन दीना।
अर्थ: आपके अंदर संसार की सारी शक्तियाँ समाहित हैं और अपने भक्तों के लालन-पालन के लिए उन्हें धन धान्य रुपी आशीर्वाद देती हैं।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला, तुम ही आदि सुन्दरी बाला।
अर्थ: आप अन्नपूर्णा के रूप में संपूर्ण संसार का पालन करने वाली हैं और आप ही सबसे सुन्दर बाला/स्त्री हैं।

प्रलयकाल सब नाशन हारी, तुम गौरी शिव शंकर प्यारी।
अर्थ: दुःख की घड़ी में आप सभी दुखों का नाश करती हैं। आप ही गौरी का रूप और शिव की प्रिय हैं।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।
अर्थ: स्वयं शिव और उनके भक्त भी आपका गुणगान करते हैं और ब्रह्मा विष्णु आपकी नियमित आराधना करते हैं।

रुप सरस्वती को तुम धारा, दे सुबुद्धि ॠषि मुनिन उबारा।
अर्थ: आप ही माँ सरस्वती का रूप हैं और ऋषि मुनियों को बुद्धि प्रदान कर उनके उद्धार का कार्य करती हैं।

धरा रूप नरसिंह को अम्बा । प्रकट भई फाडकर खम्बा।
अर्थ: खम्भे को फाड़कर आप नरसिंह का रूप धारण कर प्रकट हुई थी।

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो, हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।
अर्थ: भक्त प्रहलाद की रक्षा कर अपने ही हिरण्यकश्यप को स्वर्ग भेजा था।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं।
अर्थ: आप ही जगत माता, लक्ष्मी का रूप हैं और आप ही नारायण यानि की विष्णु के अंग में समाहित हैं।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा, दयासिन्धु दीजै मन आसा।
अर्थ: आपका वास क्षीर सागर में है। आप स्वयं दया की सागर हैं, कृपया मेरी आशाओं को पूर्ण करें।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी।
अर्थ: आपका निवास हिगलाज में भी है। आपकी महिमा का बखान शब्दों में करना असंभव है।

मातंगी धूमावति माता, भुवनेश्वरि बगला सुखदाता।
अर्थ: आप सुख प्रदान करने वाली मातंगी, धूमवती, भुवनेश्वरी और बगला माता हैं।

श्री भैरव तारा जग तारिणि, छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि।
अर्थ: आप भैरवी देवी संसार को तारने वाली हैं। आप ही छिन्नमस्ता और संसार के दुखों को हरने वाली माता हैं।

केहरि वाहन सोह भवानी, लांगुर वीर चलत अगवानी।
अर्थ: सिंह की सवारी करने वाले आप भवानी हैं। हनुमान भी आपकी अगुवाई करते हुए आपके आगे चलते हैं।

कर में खप्पर खड्ग विराजे, जाको देख काल डर भागे।
अर्थ: आपके हाथों में स्थापित खप्पड़ और खडग को देख काल भी दूर भागते हैं।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शुला।
अर्थ: आपके हाथों में विद्यमान रहने वाले त्रिशूल और अस्त्रों को देख शत्रुओं के हृदय भयभीत हो उठते हैं।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत, तिहूं लोक में डंका बाजत।
अर्थ: आप नगरकोट में विराजित रहती हैं और तीनों लोकों में आपके नाम का डंका बजता है।

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन संहारे।
अर्थ: आपने शुंभ-निशुंभ जैसे दानव सहित अनेकों रक्तबीजों का नाश किया है।

महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अघ भार मही अकुलानी।
अर्थ: अभिमानी राजा महिषासुर ने अपने पापों से धरती का बोझ बढ़ा दिया था।

रूप कराल कालिका धारा, सैन्य सहित तुम तिहि संहारा।
अर्थ: काली का विशाल रूप धारण कर आपने उसकी सेना के साथ उसका नाश किया।

परी गाढं संतन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब तब।
अर्थ: आपके भक्तों और संतों पर जब-जब संकट की घड़ी आयी है, अपने तब-तब उनकी सहायता की है।

अमरपूरी अरू बासव लोका, तब महिमा रहें अशोका।
अर्थ: अमरपुरी सहित बाकी के लोक भी आपकी महिमा से ही शोक से मुक्त रहते हैं।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नर नारी।
अर्थ: अग्नि में भी आपकी ज्योति विद्यमान है, सभी नर नारी हमेशा आपकी पूजा अर्चना करते हैं।

प्रेम भक्ति से जो यश गावे, दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे।
अर्थ: जो भी आपकी यश की गाथा प्रेम और भक्ति के साथ गाते हैं, वो सदैव ही दुःख और निर्धनता से दूर रहते हैं।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई, जन्म मरण ताको छुटि जाई।
अर्थ: श्रद्धा भाव और मन से आपका ध्यान करने वाले हमेशा के लिए जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी,योग न हो बिन शक्ति तुम्हरी।
अर्थ: समस्त देव, मुनि और योगी आपकी पुकार लगाते हुए कहते हैं कि आपकी शक्ति के बिना उनका योग नहीं हो सकता।

शंकर आचारज तप कीनो, काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।
अर्थ: शंकराचार्य ने तप कर काम और क्रोध दोनों पर विजय प्राप्त की।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को,काहु काल नहीं सुमिरो तुमको।
अर्थ: उन्होनें प्रतिदिन शिव जी का ध्यान किया लेकिन आपका मनन कभी नहीं किया।

शक्ति रूप को मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछतायो।
अर्थ: उन्होनें आपके शक्ति रूप की महिमा को नहीं समझा और जब उनकी शक्ति चली गयी तो उन्हें पछतावा हुआ।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी,जय जय जय जगदम्ब भवानी।
अर्थ: आपकी शरण में आकर उन्होनें आपकी यश का बखान किया, हे जगदम्बे भवानी आपकी जयकार हो।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, दई शक्ति नहिं कीन विलंबा।
अर्थ: हे आदि जगदम्बे माँ, आप उनकी भक्ति से प्रसन्न हुई और उन्हें बिना देरी के शक्ति प्रदान की।

मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।
अर्थ: हे माता मैं भाड़ी कष्ट से घिरा हूँ, ऐसी घरी में आपके अलावा मेरे दुखों को कौन हरेगा।

आशा तृष्णा निपट सतावें, मोह मदादिक सब विनशावें।
अर्थ: मुझे हमेशा ही आशा और तृष्णा सताती है और मोह एवं अभिमान मेरा नाश करते हैं।

शत्रु नाश कीजै महारानी, सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।
अर्थ: हे माहरणी, आप मेरे शत्रुओं का नाश करें, भवानी माँ मैं एकाग्रचित होकर आपका स्मरण करता हूँ।

करो कृपा हे मातु दयाला, ॠद्धि सिद्धि दे करहु निहाला।
अर्थ: हे पराम् दयालु माँ आप मुझे कृपा प्रदान करें और मुझे धन धान्य से पूर्ण करें।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं, तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।
अर्थ: मैं जब तक जीवित रहूँ यूँ ही आपके दया का पात्र बनता रहूँ और आपकी यश गाथा जाता रहूँ।

दुर्गा चालीसा जो नित गावै, सब सुख भोग परम पद पावै।
अर्थ: नित दुर्गा चालीसा का पाठ करने वाले हमेशा ही सभी सुखों को प्राप्त करते हैं, उच्च पद पर विराजित होते हैं।

देवीदास शरण निज जानी, करहु कृपा जगदम्ब भवानी।
अर्थ: इन सब बातों को जानते हुए ही देवीदास ने आपकी शरण ली है, हे जगदम्बा भवानी मुझ पर कृपा करें।

॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक ॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

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