Monday, December 23, 2024
Homeजीवनीलाल बहादुर शास्त्री || Lal Bahadur Shastri ||

लाल बहादुर शास्त्री || Lal Bahadur Shastri ||

लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री एक प्रसिद्ध भारतीय राजनेता, महान् स्वतंत्रता सेनानी और जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई। शास्त्री जी किसानों को जहां देश का अन्नदाता मानते थे, वहीं देश के सीमा प्रहरियों के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था जिसके चलते उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुग़लसराय, उत्तर प्रदेश में ‘मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव’ के यहाँ हुआ था। इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। अत: सब उन्हें ‘मुंशी जी’ ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी। लालबहादुर की माँ का नाम ‘रामदुलारी’ था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार से नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ तब दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उसकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया।
ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही प्रबुद्ध बालक ने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया। इसके पश्चात् ‘शास्त्री’ शब्द ‘लालबहादुर’ के नाम का पर्याय ही बन गया।
1928 में उनका विवाह गणेशप्रसाद की पुत्री ‘ललिता’ से हुआ। ललिता जी से उनके छ: सन्तानें हुईं, चार पुत्र- हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक; और दो पुत्रियाँ- कुसुम व सुमन।

शास्त्री जी भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री थे। कार्यकाल के दौरान नेहरु जी की मृत्यु हो जाने के कारण 9 जून 1964 में शास्त्री जी को इस पद पर मनोनित किया गया। इनका स्थान तो द्वितीय था, परन्तु इनका शासन ‘अद्वितीय’ रहा। इस सादगीपूर्ण एवम शान्त व्यक्ति को मरणोपरांत वर्ष 1966 में देश के सबसे बड़े सम्मान ‘भारत-रत्न’ से नवाज़ा गया।

शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। “मरो नहीं मारो” का नारा “करो या मरो” का ही एक रूप था। गाँधीवादी सोच के चलते महात्मा गाँधी ने नारा दिया था- ‘करो या मरो’। यह नारा उसी रात दिया गया था, जिस रात भारत छोड़ो आन्दोलन का आगाज़ हुआ। यह इसी नारे का असर था कि सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की प्रचंड आग फ़ैल गई। ब्रिटिश शासन के खिलाफ इसे अगर एक हिंसक नारा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यह नारा लाल बहादुर शास्त्री द्वारा 1942 में दिया गया था, जो कि बहुत ही चतुराई पूर्ण रूप से ‘करो या मरो’ का ही एक अन्य रूप था तथा समझने में आत्यधिक सरल था। सैंकड़ों वर्षों से दिल में रोष दबाए हुए बैठी जनता में यह नारा आग की तरह फ़ैल गया था।

भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। वो गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। यातायात मंत्री के समय में उन्होंनें प्रथम बार किसी महिला को संवाहक (कंडक्टर) के पद में नियुक्त किया। प्रहरी विभाग के मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिए लाठी के जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारंभ कराया। 1951 में, जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। 1952 में वह संसद के लिये निर्वाचित हुए और केंद्रीय रेलवे व परिवहन मंत्री बने।

भारत की आर्थिक समस्याओं से प्रभावी ढंग से न निपट पाने के कारण शास्त्री जी की आलोचना हुई, लेकिन जम्मू-कश्मीर के विवादित प्रांत पर पड़ोसी पाकिस्तान के साथ वैमनस्य भड़कने पर (1965) उनके द्वारा दिखाई गई दृढ़ता के लिये उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली। रूस एवम अमेरिका के दबाव पर शास्त्री जी शान्ति-समझौते पर हस्ताक्षर करने हेतु पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से रूस की राजधानी ताशकंद में मिले। कहा जाता है, उन पर दबाव बनाकर हस्ताक्षर करवाए गए। समझोते की रात को ही 11 जनवरी 1966 को उनकी रहस्यपूर्ण तरीके से मृत्यु हो गई।
उस वक्त के अनुसार, शास्त्री जी को दिल का दौरा पड़ा था, पर कहते है कि इनका पोस्टमार्टम नहीं किया गया था, क्यूंकि उन्हें जहर दिया गया था, जो कि सोची समझी साजिश थी, जो आज भी ताशकंद की आबो-हवा में दबा एक राज़ है। इस तरह 18 महीने ही लाल बहादुर शास्त्री ने भारत की कमान सम्भाली। इनकी मृत्यु के बाद पुनः गुलजारी लाल नन्दा को कार्यकालीन प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। इनकी अन्त्येष्टी यमुना नदी के किनारे की गई एवम उस स्थान को ‘विजय-घाट’ का नाम दिया गया।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments