कहानियों में अक्सर कुछ करके, कुछ सीखके, या कुछ समझके हमें बदलने और बढ़ने का मौका मिलता है। वे हमें संघर्षों और समस्याओं को निराकरण करने के लिए प्रेरित करती हैं और हमें नई दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। कहानियाँ बच्चों को मनोरंजन, सीखने और समझने का अवसर प्रदान करती हैं। ये कथाएं अक्सर शिक्षाप्रद और मनोहारी होती हैं, जो उनकी बुद्धि को विकसित करती हैं और उन्हें जीवन के मूल्यों की समझ में मदद करती हैं। आपको हमारी कहानियों से न केवल मनोरंजन मिलेगा, बल्कि आपको जीवन के मूल्यवान सबकों का भी अनुभव होगा।
10 लघु कथाएँ हिंदी में
1. अकबर बीरबल की कहानी: बिना काटे लकड़ी का टुकड़ा छोटा कैसे होगा
बादशाह अकबर अक्सर कई समस्याओें पर बीरबल के साथ चर्चा किया करते थे और साथ ही उनकी बुद्धि की परीक्षा भी लिया करते थे। वहीं, बीरबल भी हर समस्या का समाधान बड़े ही रोचक तरीके से करते थे। एक बार की बात है महाराज अकबर और बीरबल दोनों शाही बगीचे में टहल रहे थे। दोनों के बीच किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा हो रही थी कि तभी अचानक बादशाह अकबर के दिमाग में बीरबल की परीक्षा लेने की सूझी। बादशाह अकबर ने पास में पड़ी हुई एक लकड़ी की ओर इशारा करते हुए बीरबल से पूछा, “बीरबल एक बात बताओ, ये जो सामने लकड़ी पड़ी हुई है, क्या तुम इसे बिना काटे छोटा कर सकते हो?” बीरबल, बादशाह अकबर के मन की बात समझ गए और वो लकड़ी बादशाह अकबर के हाथ में देते हुए बोले, “जी महाराज मैं इस लकड़ी को छोटा कर सकता हूं।” बादशाह अकबर बोले, “वो कैसे भला।” तब बीरबल ने वहीं पास में पड़ी हुई एक बड़ी लकड़ी उठाई और बादशाह अकबर को पकड़ाते हुए पूछा, “महाराज इनमें से छोटी लकड़ी कौन-सी है?” बादशाह अकबर बीरबल की चतुराई समझ गए और छोटी लकड़ी बीरबल के हाथ में देते हुए बोले, “वाकई बीरबल तुमने बिना काटे लकड़ी को छोटा कर दिया।” इसके बाद दोनों जोर-जोर से हंसने लगे।
कहानी से सीख: बच्चों, इस कहानी से यह सीख मिलती है कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, दिमाग से काम लेकर उससे बाहर निकलने का रास्ता खोजा जा सकता है।
2. पंचतंत्र की कहानी:बंदर और खरगोश
एक बड़े-से जंगल में एक बंदर और एक खरगोश बड़े प्यार से रहते थे। दोनों में इतनी अच्छी दोस्ती थी कि हमेशा एक साथ खेलते और अपना सुख-दुख बांटते थे। एक दिन खेलते-खेलते बंदर ने कहा, “मित्र खरगोश, आज कोई नया खेल खेलते हैं।” खरगोश ने पूछा, “बताओ कौन-सा खेल खेलने का मन है तुम्हारा?” बंदर बोला, “आज हम दोनों को आँख-मिचोली खेलनी चाहिए।” खरगोश हंसते हुए कहने लगा, “ठीक है, खेल लेते है। बड़ा मज़ा आएगा।” दोनों यह खेल शुरू करने ही वाले थे कि तभी उन्होंने देखा कि जंगल के सारे पशु-पक्षी इधर-उधर भाग रहे हैं। बंंदर ने फ़ुर्ती दिखाते हुए पास से भाग रही लोमड़ी से पूछा, “अरे, ऐसा क्या हो गया है? क्यों सब भाग रहे हैं?” लोमड़ी ने जवाब दिया, “एक शिकारी जंगल में आया है, इसलिए हम सब अपनी जान बचाकर भाग रहे हैं। तुम भी जल्दी भागो वरना वह तुम्हें पकड़ लेगा।” इतना बोलकर लोमड़ी तेज़ी से वहाँ से भाग गई। शिकारी की बात सुनते ही बंदर और खरगोश भी डर कर भागने लगे। भागते-भागते दोनों उस जंगल से काफ़ी दूर निकल आए। तभी बंदर ने कहा, “मित्र खरगोश, सुबह से हम भाग रहे हैं। अब शाम हो चुकी है। चलो, थोड़ा आराम कर लेते हैं। मैं थक गया हूँ।” खरगोश बोला, “हाँ, थकान ही नहीं, प्यास भी बहुत लगी है। थोड़ा पानी पी लेते हैं। फिर आराम करेंगे।” बंदर ने कहा, “प्यास तो मुझे भी लगी है। चलो, पानी ढूंढते हैं।” दोनों साथ में पानी ढूंढने के लिए निकले। कुछ ही देर में उन्हें पानी का एक मटका मिला। उसमें बहुत कम पानी था। अब खरगोश और बंदर दोनों के मन में हुआ कि अगर इस पानी को मैं पी लूंगा, तो मेरा दोस्त प्यासा ही रह जाएगा। अब खरगोश कहने लगा, तुम पानी पी लो। मुझे ज़्यादा प्यास नहीं लगी है। तुमने उछल-कूद बहुत की है, इसलिए तुम्हें ज़्यादा प्यास लगी होगी। फिर बंदर बोला, “मित्र, मुझे प्यास नहीं लगी है। तुम पानी पी लो। मुझे पता है, तुमको बहुत प्यास लगी है।” दोनों इसी तरह बार-बार एक दूसरे को पानी पीने के लिए कह रहे थे। पास से ही गुज़र रहा हाथी थोड़ी देर के लिए रुका और उनकी बातें सुनने लगा। कुछ देर बाद हंसते हुए हाथी ने पूछा, “तुम दोनों पानी क्यों नहीं पी रहे हो?” खरगोश ने कहा, “देखो न हाथी भाई, मेरे दोस्त को प्यास लगी है, लेकिन वो पानी नहीं पी रहा है।” बंदर बोला, “नहीं-नहीं भाई, खरगोश झूठ बोल रहा है। मुझे प्यास नहीं लगी है। इसको प्यास लगी है, लेकिन यह मुझे पानी पिलाने की ज़िद कर रहा है।” हाथी यह दृश्य देखकर बोलने लगा, “तुम दोनों की दोस्ती बहुत गहरी है। हर किसी के लिए यह एक मिसाल है। तुम दोनों ही इस पानी को क्यों नहीं पी लेते हो। इस पानी को आधा-आधा करके तुम दोनों पी सकते हो।” खरगोश और बंदर दोनों को हाथी का सुझाव अच्छा लगा। उन्होंने आधा-आधा करके पानी पी लिया और फिर थकान मिटाने के लिए आराम करने लगे।
कहानी से सीख: सच्चे दोस्त हमेशा एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। सच्ची दोस्ती में स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती।
3. नटखट परी और जादुई गुफा की कहानी
एक समय की बात है एक बहुत ही नटखट परी थी। वह पूरी दुनिया देखना चाहती थी। यह सोचकर वह अपने सभी लोगों से अलग हो गई। वह हर दिन बहुक दूर-दूर तक जाती और नए लोग व नई दुनिया देखती थी। एक दिन वह उड़ती हुई एक घर के पास पहुंची। वहां पर वह खिड़की के पास छिप गई। उसने देख उस घर में एक लड़का अपनी मां से जिद्द कर रहा था कि उसे परी देखना है। उसकी मां उसे समझा रही थी कि परियां सिर्फ आसमान में रहती हैं। जब आसामान पूरी तरह से साफ हो जाए, तब तुम उन्हें देख सकते है। अभी रात हो गई है सो जाओ और सुबह जब आसामन साफ होगा तो परी को देख लेना। मां की बात सुनकर वह लड़का सोने लगता है, लेकिन इसे नींद नहीं आती है। तभी खिड़की पर उसे नटखट परी दिखाई देती है। वह उसे घर के अंदर लेकर आता है। उसने देखा वह नटखट परी बहुत ही छोटी है। दोनों साथ में खेलने लगते हैं। नटखट परी उसे अपना जादू दिखा रही थी और वह लड़का भी खुश होकर नाचता। तभी लड़के के कमरे इस तरह की शोर सुनकर वहां पर उसकी मां आने लगती है। लड़का नटखट परी से कहता है कि अब तुम्हें यहां से जाना होगा। मेरी मां आ रही हैं। लड़के की बात सुनकर नटखट परी वहां से उड़ जाती है और लड़का चुपचाप लेटकर सोने का नाटक करने लगता है। जब मां ने दरवाजा खोला तो देखा उसका बेटा तो सो रहा है। उसने सोचा उसे कोई भ्रम हुआ होगा और वह भी अपने कमरे में सोने चली गई।
कहानी से सीख: हर किसी में एक नटखट और शरारती पन छिपा होता है। फिर चाहे कोई बच्चा हो या कोई बड़ा आदमी।
4. तेनाली रामा की कहानियां: सुनहरा पौधा
तेनालीराम हर बार अपने दिमाग का इस्तेमाल करके ऐसा कुछ करते थे कि विजय नगर के महाराज कृष्णदेव दंग रह जाते थे। इस बार उन्होंने एक तरकीब से राजा को अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को मजबूर कर दिया। हुआ यूं कि एक बार राजा कृष्णदेव किसी काम के चलते कश्मीर चले गए। वहां उन्हें एक सुनहरे रंग का खिलने वाला फूल दिखा। वो फूल महाराज को इतना पसंद आया कि वो अपने राज्य विजयनगर लौटते समय उसका एक पौधा अपने साथ लेकर आ गए। महल पहुंचते ही उन्होंने माली को बुलाया। माली के आते ही महाराज ने उससे कहा, “देखो! इस पौधे को हमारे बगीचे में ऐसी जगह लगाना कि मैं इसे अपने कमरे से रोज देख सकूं। इसमें सुनहरे रंग के फूल खिलेंगे, जो मुझे काफी पसंद हैं। इस पौधे का काफी ख्याल रखना। अगर इसे कुछ भी हुआ, तो तुम्हें प्राण दंड भी मिल सकता है। माली ने सिर हिलाते हुए राजा से पौधा लिया और उनके कमरे से दिखने वाली जगह में उसे लगा दिया। दिन रात माली उस फूल का खूब ख्याल रखता था। दिन जैसे ही बीतते गए उसमें सुनहरे फूल खिलने लगे। रोज राजा उठते ही सबसे पहले उसे देखते और फिर दरबार जाते थे। अगर किसी दिन राजा को महल से बाहर जाना पड़ता था, तो उस फूल को न देख पाने के कारण उनका मन दुखी हो जाता था। एक दिन जब राजा सुबह उस फूल को देखने के लिए अपनी खिड़की पर आए, तो उन्हें वो फूल दिखा ही नहीं। तभी उन्होंने माली को बुलवाया। महाराज ने माली से पूछा, “वो पौधा कहा गया। मुझे उसके फूल क्यों दिख नहीं रहे हैं।” जवाब में माली ने कहा, “साहब! उसे कल शाम को मेरी बकरी खा गई।” इस बात को सुनते ही उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने सीधे राजमाली को दो दिन बाद मौत की सजा सुनाने का आदेश दे दिया। तभी वहां सैनिक आए और उसे जेल में डाल दिया। माली की पत्नी को जैसे ही इस बारे में पता चला, वो दरबार में राजा से फरियाद करने पहुंची। गुस्से में महाराज ने उसकी एक बात न सुनी। रोते-रोते वो दरबार से जाने लगी। तभी एक व्यक्ति ने उसे तेनालीराम से मिलने की सलाह दी। रोते हुए माली की पत्नी ने तेनालीराम को अपने पति को मिली मौत की सजा और उस सुनहरे फूल के बारे में बताया। उसकी सारी बात सुनकर तेनालीराम ने उसे समझा-बुझाकर घर भेज दिया। अगले दिन गुस्से में माली की पत्नी उस सुनहरा फूल खाने वाली बकरी को चौराहे में ले जाकर डंडे से पीटने लगती है। ऐसा करते-करते बकरी अधमरी हो गई। विजयनगर राज्य में पशुओं के साथ इस तरह का व्यवहार करना मना था। इसे क्रूरता माना जाता था, इसलिए कुछ लोगों ने माली की पत्नी की इस हरकत की शिकायत नगर कोतवाल को कर दी। सारा मामला जानने के बाद नगर कोतवाल के सिपाहियों को पता चला कि यह सब माली को मिले दंड की वजह से वो गुस्से में कर रही है। यह जानते ही सिपाही इस मामले को दरबार में लेकर गए। महाराज कृष्णराज ने पूछा कि तुम एक जानवर के साथ इतना बुरा व्यवहार कैसे कर सकती हो? “ऐसी बकरी जिसके कारण मेरा पूरा घर उजड़ने वाला है। मैं विधवा होने वाली हूं और मेरे बच्चे अनाथ होने वाले हैं, उस बकरी के साथ कैसा व्यवहार करूं महाराज” माली की पत्नी ने जवाब दिया। राजा कृष्णराज ने कहा, “तुम्हारी बात का मतलब मैं समझ नहीं पाया। ये बेजुबान जानवर तुम्हारा घर कैसे उजाड़ सकता है?” उसने बताया, “साहब! ये वही बकरी है जिसने आपके सुनहरे पौधे को खा लिया था। इसकी वजह से आपने मेरे पति को मौत की सजा सुना दी है। गलती तो इस बकरी की थी, लेकिन सजा मेरे पति को मिल रही है। सजा असल में इस बकरी को मिलनी चाहिए, इसलिए मैं इसे डंडे से पीट रही थी।” अब महाराज को यह बात समझ आई कि गलती माली की नहीं, बल्कि बकरी की थी। यह समझते ही उन्होंने माली की पत्नी से पूछा कि तुम्हारे पास इतनी बुद्धि कैसे आई कि इस तरह से मेरी गलती के बारे में समझा सको। उसने कहा कि महाराज, मुझे रोने के अलावा कुछ भी नहीं सूझ रहा था। यह सब मुझे पंडित तेनालीराम जी ने समझाया है। एक बार फिर राजा कृष्णराय को तेनालीराम पर गर्व महसूस हुआ और उन्होंने कहा कि तेनालीराम तुमने मुझे एक बार फिर बड़ी गलती करने से रोक दिया। यह कहते ही महाराज ने माली का मृत्यु दंड का फैसला वापस लेते हुए उसे जेल से रिहा करने का आदेश दिया। साथ ही तेनालीराम को उनकी बुद्धि के लिए पचास हजार स्वर्ण मुद्राएं उपहार के रूप में दीं।
कहानी से सीख: समय से पहले कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। कोशिश करने से बड़ी-से-बड़ी मुसीबत से निपटा जा सकता है।
5. मोगली की कहानी
सालों पहले गर्मियों के मौसम में एक दिन जंगल में सभी जानवर आराम कर रहे थे। अच्छे से आराम करके शाम के समय भेड़ियों का एक झुंड शिकार के लिए निकला। उनमें से एक दारुका नाम के भेड़िये को कुछ दूर जाते ही झाड़ियों से बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी। भेड़िया जब झाड़ियों के पास जाकर देखता है, तब उसे एक बच्चा दिखाई दिया। वह बिना कपड़े के जमीन पर लेटा था। बच्चे को देखकर भेड़िया चौंक गया और उसे अपने साथ अपनी बस्ती ले गया। इस तरह इंसान का बच्चा भेड़ियों के बीच में आ जाता है। बच्चे को भेड़ियों के बीच देखकर उस जंगल में रहने वाले शेर खान को गुस्सा आ जाता है, क्योंकि वही उस बच्चे को इंसान की बस्ती से उठाकर खाने के लिए लाया था। भेड़िया अपने परिवार की ही तरह इंसान के उस बच्चे को भी पालता है। उसके परिवार में कुछ छोटे भेड़िये और उनकी मां रक्षा थी। रक्षा ने उस बच्चे को मोगली नाम दिया। मोगली को एक परिवार मिल गया और वह भेड़ियों को अपना भाई-बहन समझकर उनके साथ रहना लगा। दारुका ने भी अपनी पत्नी रक्षा को बता दिया था कि इस बच्चे को शेर खान के नजरों से बचाकर रखना, क्योंकि वो बच्चे को खाना चाहता है। रक्षा इस बात का पूरा ख्याल रखती थी। वो अपने बच्चों और मोगली को कभी भी अपनी नजरों से दूर जाने नहीं देती थी। एक तरफ कुछ समय बीतने के बाद जंगल में रहने वाले सभी जानवर मोगली के बहुत अच्छे दोस्त बन गए। दूसरी तरफ शेर खान दूर से ही मोगली पर नजर गड़ाए रखता था। वह मोगली का शिकार करने के लिए उचित समय के इंतजार में था। भेड़ियों के झुंड का नेतृत्व एक बुद्धिमान भेड़िया कर रहा था, उस दल में बल्लू नाम का भालू और बघीरा नामक एक पैंथर भी था। सभी एक जगह एकत्रित होकर मोगली को लेकर बातें करने लगे। उनका कहना था कि हमें मोगली को भेड़िये की तरह ही पालना होगा। इसपर झुंड का सरदार अपने साथी बघीरा और बल्लू को बोलता है कि तुम दोनों मोगली को जंगल के नियम- कानून सिखाओगे। साथ ही मोगली की रक्षा भी करोगे। इस तरह मोगली को जंगल में रहते-रहते एक साल बीत जाता है। मोगली धीरे-धीरे करके बड़ा होने लगा और उसके बड़े होने तक बल्लू और बघीरा मोगली को सारे नियम कानून के साथ ही खुद की रक्षा करने का तरीका भी सीखा देते हैं। मोगली बड़े होने तक कई जानवरों की भाषा सीख जाता है। साथ ही वह आसानी से पेड़ों पर चढ़ना, नदी में तैरना व शिकार करना भी सीख गया। बघीरा ने मोगली को इंसानों द्वारा बिछाए फंदे और जाल से दूर रहने और जाल में फंसने के बाद उससे बाहर निकलने के तरीके सिखाए। एक दिन समूह में रहने वाला एक भेड़िये का छोटा बच्चा शिकारियों के बिछाए जाल में फंस जाता है। उस फंसे हुए भेड़िये को शेर खान खाना चाहता था, तभी शेर खान से पहले मोगली वहां पहुंचकर नन्हे भेड़िये को बचा लेता है। शेर खान को यह सब देखकर बहुत गुस्से आ जाता है। फिर शेर खान कुछ दिनों बाद मोगली को पकड़ने की कोशिश करता है, लेकिन वो उसे पकड़ नहीं पाता। गुस्से में शेर खान फैसला लेता है कि वो मोगली को पकड़ने के लिए बंदरों की सहायता लेता है। सारे बंदर जंगल के दूसरे हिस्से में रहते थे। वो सारे बंदर काफी खतरनाक थे। शेर की बातें सुनकर बंदरों का राजा मोगली को पकड़ने के लिए तैयार हो जाता है। बंदरों का राजा अपने सारे बंदरों को मोगली को पकड़ने का आदेश देता है। एक-दो दिन कुछ बंदर मोगली पर नजर रखते हैं और सही समय मिलते ही मोगली का अपहरण करके उसे घने जंगल से घिरे एक पहाड़ पर ले जाते हैं। मोगली सोच रहा था कि उसके पहाड़ में होने की बात बघीरा व बल्लू को पता चल जाए। तब उसे असमान में उड़ता हुआ एक चील दिखाई दिया। मोगली उस चील को आवाज लगाकर कहता है कि तुम मेरी मदद कर दो। मेरी यहां होने की खबर बघीरा और बल्लू को दे दो, उन्हें कहना कि मुझे बंदरों ने यहां कैद करके रखा है। चील ने जैसे ही मोगली की बात सुनी, तो वो जंगल की तरफ बघीरा और बल्लू के पास पहुंची। बघीरा और बल्लू को मोगली की जानकारी मिलते ही वे कॉ नामक अजगर से सहायता मांगने पहुंचे। शुरुआत में कॉ सीधे बघीरा और बल्लू को मना कर देता है। फिर वे कॉ को मोगली के बारे में बताते हैं। मोगली के बारे में जानकर कॉ उनकी सहायता करने के लिए राजी हो जाता है। सभी मोगली को बचाने के लिए निकल पड़ते हैं। शीघ्र ही कॉ, बघीरा और बल्लू बंदरों के इलाके में पहुंच जाते हैं। वहां पहुंचकर तीनों छिपकर देखने लगते हैं। तीनों देखते हैं कि वहां सैंकड़ों बंदर हैं। फिर थोड़ी देर बाद कॉ कहता है कि अब मोगली को बचाने का समय आ गया है। चलो उसे बचाकर ले आते हैं। तभी तीनों बंदरों पर हमला कर देते हैं। बघीरा अपने पंजों से बंदरों पर वार करता है, जिसके दर्द से बंदर चिल्लाने लगते हैं। तभी कुछ बंदर बल्लू पर टूट पड़ते हैं। यह देखकर कॉ अजगर आता है और बंदरों को पूंछ से मारने लगता है। उसके बाद बंदर डरकर भाग जाते हैं। फिर तीनों चैन की सांस लेते हैं और कॉ मोगली को दरवाजा तोड़कर बाहर निकाल लेता है। मोगली आजाद होते ही पेड़ के पीछे दौड़कर छिप गया। फिर अचानक से बंदर हमला करके बघीरा को घेर लेते हैं। बघीरा को घेरने के बाद बंदर मोगली को फिर से पकड़ लेते हैं। मोगली देखता है कि बघीरा घिरा हुआ है, तभी उसे याद आता है कि बंदरों को पानी से डर लगता है। वो बघीरा को चिल्लाकर बोलता है कि पानी में कूद जाओ बंदरों को पानी से डर लगता है। बघीरा यह सुनते ही तुरंत पानी में कूद जाता है और बंदरों के चुंगल से बाहर निकल जाता है। कुछ समय बाद मोगली बंदरों की कैद से भाग जाता है और फिर वह एक इंसानी बस्ती में पहुंचता है। उस बस्ती में पहुंचने के बाद उसे एक औरत मिलती है। उस औरत का नाम मेसुआ था, जिसका बच्चा सालों पहले एक शेर जंगल में उठाकर ले गया था। मोगली उसी औरत के साथ गांव में रहने लगता है। गांव वालों ने भी मोगली को रहने दिया और उसे जानवरों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंप दी। कुछ दिनों बाद मोगली का भेड़िया भाई उसे गांव में देखता है। देखते ही भेड़िया सीधे मोगली के पास जाकर उसे बताता है कि शेर खान उसे मारने की तैयारी कर रहा है। मोगली जान गया था कि शेर खान उसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाला है, इसलिए मोगली ने उसे खत्म करने का एक प्लान बनाया। उस योजना में मोगली ने अपने भेड़िया भाइयों की सहायता ली। उसने भेड़िया से कहा कि शेर खान को एक घाटी पर ले आओ। शेर खान के घाटी पर पहुंचने के बाद मोगली ने दोनों तरफ से भैंसों का झुंड छोड़ दिया और खुद भी एक भैसे पर बैठ गया। शेर खान भैसों के झुंड के पैरों के नीचे आ जाता है। तभी शेर खान की मौत हो जाती है। फिर मोगली बेखौफ होकर गांव वालों के साथ रहने लगा। कुछ समय बीतने के बाद गांव के कुछ लोगों ने मोगली पर जादू करने का आरोप लगाया और उसे गांव से बाहर निकाल दिया। तब तक मोगली बड़ा हो गया था। वहां से निकलकर वो सीधे जंगल गया। वहां रहते हुए कुछ समय बीता ही था कि उसके भेड़िया भाइयों और बहनों की मृत्यु हो गई। वह अकेले उदास घुमने लगा, तभी उसकी मुलाकात दोबारा मेसुआ से होती है। मोगली अपनी सारी कहानी मेसुआ को बताता है। मेसुआ को यह यकीन हो जाता है कि उसके जिस बेटे को शेर उठाकर ले गया था, वो मोगली ही है। मेसुआ अपनी कहानी मोगली को बताती है और फिर दोनों साथ में रहने का फैसला करते हैं। इसके बाद मोगली इंसानों की बस्ती में खुशी-खुशी रहने लगता है और समय मिलने पर जंगल जाकर अपने दोस्तों से मिल लेता है।
कहानी से सीख: हौसला रखने पर हर मुश्किल दूर हो जाती है। साथ ही हर इंसान को पशु-पक्षियों संग प्यार से पेश आना चाहिए। वक्त पड़ने पर वो दोस्त बनकर मदद कर सकते हैं।
6. राजा और तोता की कहानी
एक समय की बात है, किसी एक राज्य में हरिशंकर नाम का राजा राज करता था। उस राजा के तीन बेटे थे। उसकी ख्वाहिश थी कि वह उसका सबसे काबिल बेटा उसकी राजगद्दी संभाले, लेकिन वह इस बाात लेकर संशय में था कि तीनों में से किसे वह अपना राजपाट सौंपे। एक दिन राजा को एक तरकीब सूझी। उसने उसी समय अपने तीनों बेटों को बुलाया और कहा, “बेटे! आज मैं तुम सब से एक सवाल पूछता हूं, अगर तुम लोगों के सामने एक गुनेगार खड़ा हो तो खड़ा हो तो तुम उसके साथ क्या करोगे?” इस पर राजा के पहले बेटे ने कहा, “उस अपराधी को सजाए मौत दी जानी चाहिए। ” वहीं, दूसरे बेटे ने कहा, ” गुनेगार को कालकोठरी में बांध देना चाहिए। ” जबकि तीसरे बेटे ने कहा, ” पिताजी, हमें उसे सजा देने से पहले इस बात की जांच करनी चाहिए कि उसने सही में अपराध किया है या नहीं ।” इसपर राजा के तीसरे बेटे ने सभी को एक कहानी सुनाई। एक राजा था, जिसके पास एक बुद्धिमान तोता था। एक बार उस तोता ने महराज से कहा, ” मुझे अपने माता और पिताजी के पास जाना है।” राजा ने उसकी बात नहीं मानी, लेकिन तोता ने हार नहीं मानी। वह लगातार महराज से जिद्द करने लगा कि मुझे माता-पिता के पास जाने दें। अंत में राजा ने तोता की बात मान ली और कहा, “ठीक है तुम अपने माता-पिता से मिलकर आओ, लेकिन वहां ज्यादा दिन नहीं रूकना। ” राजा ने तोता को केवल पांच दिन की अनुमती दी और कहा, तुम पांच दिन में अपने परिवार वालों से मिलकर लौट आना। इसके बाज तोता पांच दिन के लिए अपने माता-पिता के पास चला गया। छठे दिन जब वह राजा के पास लौट रहा था तो उसने सोचा कि क्यों न वह मराज के लिए कुछ उपहार ले लिया जाए। फिर वह पर्वत कि ओर निकल पड़ा। दरअसल, वह महराज के लिए अमृत फल लेना चाहता था। वहां पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। तोता ने पर्वत पर पहुंच कर फल तो ले लिया, लेकिन रात हो जाने के कारण वह आगे नहीं बढ़ा और वहीं रूक गया। उस रात जब तोता सो रहा था तभी एक सांप वहां आया और उसने राजा के लिए गए अमृत फल को खाने लगा। सांप ने फल को खाया इस कारण उस फल में जहर फैल गया था। हालांकि, तोते को इस बात की भनक तक नहीं थी। अगली सुबह जब वह जगा तो फल लेकर महल की ओर चल पड़ा। जब वह महत पहुंचा तो खुशी-खुशी सीधे राजा के पास गया और कहा, ” महराज मैं आपके लिए यह अमृत फल लेकर आया हूं। आप इसे खाएंगे तो सदा के लिए अमर हो जाएंगे।” यह सुनकर राजा काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने तुरंत उस अमृत फल को खाने के लिए मांगा। इस पर एक मंत्री ने कहा, ” जरा रूकिए महराज, आप इस फल को बिना जांच किए कैसे खा सकते हैं। एक बार यद देख तो लीजिए कि तोता द्वारा लाया गया यह अमृत फल सही है या नहीं।” राजा उस मंत्री की बात से सहमत हुआ और कहा कि तुरंत इस फल को एक कुत्ते को खिलाया जाए। राजा का आदेश पाकर सैनिक ने फल का एक टुकड़ा कुत्ते को खिलाया। फल खाते ही कुत्ते की मौत हो गई। यह देख राजा गुस्से से आग बबूला हो गया। उसने क्रोध में आकर तलवार से तोता के सिर को काट दिया। साथ ही फल को फेंकवा दिया। कुछ साल बाद ठीक उसी स्थान पर एक पौधा निकल आया। यह देख राजा को लगा कि यह उसी जहरीले फल का पौधा है। उसने सभी को आदेश दिया कि उस पेड़ का फल कोई नहीं खाएगा। कुछ दिन बाद एक वृद्ध व्यक्ति उस पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रूका। उसे भूख भी काफी जोर से लगी थी। उसने उसी पेड़ से फल तोड़ा और खाने लगा। फल खाने के बाद वह बूढ़ा व्यक्ति एक दम से जवान हो गया। राज ने जब यह देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया। उसे समझ आ गया कि वह फल जहरीला नहीं था। उससे पबहुत बड़ी गलती हो गई। उसने बिना सच्चाई जाने तोता को मार दिया। इसे लेकर उसे काफी पछतावा भी हुआ। इसके लिए वह मन ही मन खुद को कोसने लगा। इधर, तीसरे राजकुमार की कहानी खत्म होने के बाद राजा हरिशंकर ने उसे ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया। इसके बाद राज्य में जश्न मनाया गया।
कहानी से सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी बिना जांच किए किसी को सजा नहीं देनी चाहिए।
7. टीनू और चिड़िया के घोंसले की कहानी
एक समय की बात है, टीनू नाम की लड़की थी जो स्कूल में दिए गए कार्यों में बड़ी रुचि रखती थी। इस साल टीनू के स्कूल में गर्मी की छुट्टियां पड़ने से पहले उसकी टीचर ने सभी को विभिन्न पक्षियों के चित्र दिखाकर चिड़िया पर निबंध लिखने के लिए कहा था। सभी बच्चों को स्कूल खुलते ही निबंध टीचर को दिखाना था। पक्षियों की रंग-बिरंगी किताब टीनू को बहुत पसंद थी। जब टीचर ने बताया कि उन पर निबंध लिखना है और सबसे अच्छा लिखने वाले को इनाम में वह किताब मिलेगी, तो टीनू खुश हो गई। टीचर ने सभी पक्षियों से जुड़ी कुछ कहानियाँ भी बच्चों को सुनाई। उसके बाद स्कूल की गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ गईं। यूँ तो टीनू हर साल अपनी गर्मी की छुट्टियाँ बिताने के लिए कहीं-न-कही जाती थी। लेकिन इस साल की छुट्टियों में टीनू रोज़ पास के ही बगीचे में जाकर पक्षियों और उनके घोंसले देखने लगी। उस बगीचे में गोरैया, दर्जिन, लवा जैसे बहुत-से पक्षी आते थे। टीनू बगीचे में आने वाली हर चिड़िया को पहचानने की कोशिश करती और उन्हें ग़ौर देखती रहती। टीनू देखती थी कि हर चिड़िया एक-एक घास, पत्ती, पंख, आदि को जोड़कर कैसे अपना घोंसला बना रही है। उसके मन में होता था कि चिड़िया को घोंसला बनाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। टीनू चाहती थी कि वो किसी तरह से उन पक्षियों की मदद करे। एक दिन टीनू ने देखा कि पास के बगीचे में बदमाश लड़कों ने लवा चिड़ियों का घोंसला तोड़ दिया है। टीनू को यह देखकर बहुत दुख हुआ। उसने सोचा कि क्यों न मैं इनके लिए खुद एक-दो घोंसले बना दूँ। शायद ये इसका इस्तेमाल कर लेंगीं। टीनू को लगा कि वो कुछ ही देर में घोंसला बनाकर तैयार कर देगी। लेकिन टीनू पूरा दिन तिनकों और दूसरी चीज़ों से चिड़िया का घोंसला बुनती रही। बड़ी मुश्किल से जब घोंसला तैयार हुआ, तो घोंसले को पेड़ पर टिकाने के लिए कुछ मिला नहीं। टीनू की माँ यह सब देख रही थी। तभी टीनू ने माँ को बताया, “देखिए न, मैंने चिड़िया के लिए एक घोंसला बनाया है। मगर यह उतना सुंदर नहीं है, जितना चिड़िया बनाती हैं। मैंने सोचा था आसानी से एक सुंदर घोंसला बन जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह घोंसला अंदर से काफी कठोर बन गया है। क्या आप इसे मुलायम बना देंगी?” किसी तरह से टीनू की माँ ने उस घोंसले को थोड़ा ठीक किया। उसके बाद टीनू ने उस घोंसले को धागे की मदद से पेड़ पर टिका दिया। अब बगीचे में बैठकर टीनू लवा पक्षी के आने का इंतज़ार करने लगी। वो पक्षी बगीचे में आए तो, लेकिन टीनू द्वारा बनाया गया घोंसला उन्होंने इस्तेमाल नहीं किया। टीनू के साथ उसकी माँ भी बगीचे में आई थी, उसने टीनू को उदास देखकर कहा, “तुम परेशान मत होना, अभी चिड़िया घोंसले पर आ जाएगी।” तभी एक लवा पक्षी ने आकर टीनू द्वारा बनाए गए घोंसले को तोड़ दिया। अब टीनू ने मुँह लटका लिया। तब उसे उसकी माँ ने समझाया कि तुम्हें दुखी नहीं होना चाहिए। देखो, तुम्हारे द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों से ही लवा पक्षी अपने लिए घोंसला बना रहे हैं। हो सकता है कि इन्हें दूसरों का बनाया हुआ घोंसला पसंद नहीं आता हो। दुखी मन से टीनू ने कहा, “माँ मैं अपने स्कूल के निबंध में यह सबकुछ लिखूंगी।” कुछ देर बाद टीनू ने कहा, “माँ आपने देखा कि लवा पक्षी अपना घर झाड़ियों में बना रहे हैं।” जवाब में टीनू की माँ बोली, “हाँ बेटा, मैंने सुना था कि लवा पक्षी अपना घोंसला किसी के घर के रोशनदान या पेड़ पर ही बनाते हैं। आज यह नई बात पता चली है।” कुछ और दिनों बाद टीनू ने लवा पक्षियों के बारे में एक और बात जानी कि वो सीधे उड़कर अपने घोंसले में नहीं जाते। घोंसले से कुछ दूर ठहरकर इधर-उधर कूदते हुए वो अपने घोंसले तक पहुँचते हैं, ताकि किसी को उनके घोंसले का पता न चले। थोड़े ही दिनों में स्कूल की गर्मियों की छुट्टियाँ खत्म हो गईं। टीनू ने स्कूल जाकर लवा पक्षी के बारे में लिखा और निबंध प्रतियोगिता जीत ली। ईनाम में मनपसंद चिड़ियों वाली किताब मिलने पर टीनू खुश हो गई। प्रतियोगिता जितने के बाद भी टीनू रोज़ चिड़ियों की चहचहाहट सुनने के लिए उस बगीचे में जाकर घंटों बैठती है। मानो उसकी चिड़ियों के साथ दोस्ती हो गई हो।
कहानी से सीख: चिड़िया के घोंसले की कहानी से यह सीख मिलती है कि छोटी-छोटी बात पर मन दुखी नहीं करना चाहिए। साथ ही आसपास की चीज़ों पर ग़ौर करने से हमें काफ़ी कुछ नया जानने को मिलता है।
8. मूर्ख राजा और चतुर मंत्री की कहानी
कई सालों पहले नदी के किनारे पर एक दियत्स नामक नगरी हुआ करती थी। इस नगरी में शासन करने वाला राजा बहुत ही मुर्ख था। वहीं, राजा का मंत्री बहुत चतुर था। एक दिन शाम के समय राजा और मंत्री दोनों नदी किनारे टहलते हुए शाम का आनंद ले रहे थे। तभी राजा ने मंत्री से एक सवाल पूछा, “क्या तुम बता सकते हो कि यह नदी किस दिशा में और कहां तक बहकर जाती है”। मंत्री ने राजा को तुंरत जवाब देते हुए कहा कि यह नदी पूर्व की दिशा में बहती है और यह पूरब देश तक जाती है। इस पर राजा ने कहा कि वह नहीं चाहता कि हमारे देश का पानी पूरब के देशवासी इस्तेमाल करें। राजा ने मंत्री को नदी का पानी रोकने के लिए दीवार खड़ी करने का आदेश दिया। तभी मंत्री ने राजा से कहा कि ऐसा करने पर हमारा ही नुकसान होगा। राजा ने गुस्से में कहा कि पानी हमारा है और पूरब देश वाले मुफ्त में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं और तुम बोल रहे हो कि हमारा नुकसान होगा। इसमें हमारा कुछ नुकसान नहीं होगा। तुम जल्दी से जल्दी नदी में दीवार बनवाने का काम शुरू कराओ। मंत्री राजा की आज्ञा का पालन करते हुए कारीगरों को बुलाता है और नदी के पास दीवार बनवाने का काम शुरू करवा देता है। नदी में दीवार बनाने का काम तेजी से चलने लगा और कुछ दिनों में दीवार बनकर तैयार हो गई। यह देखकर राजा बहुत प्रसन्न होते हैं, परंतु उनकी मुर्खता के कारण कुछ दिन बाद जब बारिश का मौसम दस्तक देता है, तो नदी का पानी पूरे गांव में भरने लगता है। धीरे-धीरे पानी लोगों के घरों में घुसना शुरू हो जाता है। इससे परेशान होकर सारे नगरवासी एकत्रित होकर मंत्री के पास आते हैं। मंत्री उन्हें आश्वासन देता है कि वह इस समस्या का हल ढूंढ निकालेगा। लोगों की परेशानी सुनकर मंत्री समाधान निकालने के लिए एक योजना बनाता है। उन्होंने राज महल में समय को बताने के लिए घंटा बजाने वाले शख्स को इसमें शामिल किया। वह समय के अनुसार घंटा बजाता था, जिससे लोगों को समय पता चलता था। मंत्री ने उसे कहा कि आज तुम प्रति घंटे की बजाय हर आधे घंटे में घंटा बजाना। उस आदमी ने मंत्री ने जैसा कहा वैसा ही किया। इससे जब सुबह के तीन बज रहे थे, तो उसने छह बार घंटा बजाया। छह घंटे सुनकर राजा और सभी नगरवासियों को लगा कि छह बज गए हैं और सुबह हो गई है। राजा उठकर बाहर आता है, तो वहां मंत्री पहले से मौजूद होता है। बाहर अंधेरा देखकर राजा मंत्री से पूछता है कि अभी तक सूर्योदय क्यों नहीं हुआ है। राजा के सवाल का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा, “महराज प्रातःकाल हो चुकी है, पर हमने पूर्व दिशा वालों के यहां पानी को जाने से रोक दिया है, तो शायद इसलिए उन्होंने हमारे यहां सूर्य की रोशनी को आने से रोक दिया है। इसलिए सूर्य उदय तो हुआ है, पर हमारे देश तक रोशनी नहीं पहुंची है। ऐसा लग रहा है कि अब हमारे देश में सूरज की रेशनी कभी नहीं पहुंच पाएगी। यह सुनकर राजा चिंता में पड़ जाता है और मंत्री से पूछता है कि क्या इसका कोई उपाय नहीं है। तब मंत्री उत्तर देता है कि महाराज अगर आप नदी का पानी छोड़ देते हैं, तो हो सकता है कि वो भी सूरज को छोड़ देंगे। इससे राज्य में फिर से रोशनी आ जाएगी। राजा मंत्री को तुरंत नदी की दीवार तुड़वाने का आदेश देता है। मंत्री कारीगरों को नदी पर ले जाकर उन्हें दीवार तोड़ने के लिए कहता है। कुछ घंटों में कारीगरों ने दीवार गिरा दी और तब तक सूरज के निकलने का समय भी हो गया था। सूर्य उदय हो गया। सूर्य की लालिमा देखकर राजा बहुत खुश हुआ और मंत्री को इनाम देने की घोषणा की। राजा ने मंत्री की तारीफ करते हुए कहा कि तुम्हारे कारण हमारे राज्य में फिर से सूर्य उदय हो पाया है और तुमने हमारे राज्य को अंधकार से बचाया है। इसके बाद मंत्री कहता है कि महराज यह तो राज्य के लिए प्रति मेरा फर्ज था।
कहानी से सीख: कभी भी दूसरों का बुरा नहीं करना चाहिए और न ही उनकी तरक्की देखकर उनसे जलन की भावना रखनी चाहिए।
9. पंचतंत्र की कहानी: भूखी चिड़िया
सालों पहले एक घंटाघर में टींकू चिड़िया अपने माता-पिता और 5 भाइयों के साथ रहती थी। टींकू चिड़िया छोटी सी थी। उसके पंख मुलायम थे। उसकी मां ने उसे घंटाघर की ताल पर चहकना सिखाया था। घंटाघर के पास ही एक घर था, जिसमें पक्षियों से प्यार करने वाली एक महिला रहती थी। वह टींकू चिड़िया और उसके परिवार के लिए रोज रोटी का टुकड़ा डालती थी। एक दिन वह बीमार पड़ गई और उसकी मौत हो गई। टींकू चिड़िया और उसका पूरा परिवार उस औरत के खाने पर निर्भर था। अब उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था और न ही वो अपने लिए खान जुटाने के लिए कुछ करते हैं। एक दिन भूख से बेहाल होने पर टींकू चिड़िया के पिता ने कीड़ों का शिकार करने का फैसला किया। काफी मेहनत करने के बाद उन्हें 3 कीड़े मिले, जो परिवार के लिए काफी नहीं थे। वे 8 लोग थे, इसलिए उन्होंने टींकू और उसके 2 छोटे भाइयों को खिलाने के लिए कीड़े साइड में रख दिए। इधर, खाने की तलाश में भटक रही टींकू, उसके भाई और उसकी मां ने एक घर की खिड़की में चोंच मारी, ताकि कुछ मिल जाए, लेकिन कुछ नहीं मिला। उल्टा घर के मालिक ने उनपर राख फेंक दी, जिससे तीनों भूरे रंग के हो गए। उधर, काफी तलाश करने के बाद टींकू के पिता को एक ऐसी जगह मिली, जहां काफी संख्या में कीड़े थे। उनके कई दिनों के खाने का इंतजाम हो चुका था। वह जब खुशी-खुशी घर पहुंचा, तो वहां कोई नहीं मिला। वह परेशान हो गया। तभी टींकू चिड़िया, उसका भाई और मां वापस लौटे, तो पिता उन्हें पहचान नहीं पाए और गुस्से में उन्होंने सबको भगा दिया। टींकू ने पिता को समझाने की काफी कोशिश की। उसने बार-बार बताया कि किसी ने उनके ऊपर रंग फेंका है, लेकिन टींकू के हाथ असफलता ही लगी। उसकी मां और भाई भी निराश हो गए, लेकिन टींकू ने हार नहीं मानी। वह उन्हें लेकर तालाब के पास गई और नहलाकर सबकी राख हटा दी। तीनों अब अपने पुराने रूप में आ गए। अब टींकू के पिता ने भी उन्हें पहचान लिया और माफी मांगी। अब सब मिलकर खुशी-खुशी एक साथ रहने लगे। उनके पास खाने की भी कमी नहीं थी।
कहानी से सीख: कभी भी किसी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए। इंसान को खुद मेहनत करके अपनी जरूरत की चीजों को जुटाना चाहिए।
10. हाथी और दर्ज़ी की कहानी
सालों पहले एक गाँव रत्नापुर में एक जाना-माना मंदिर था। उस मंदिर में रोज़ एक पुजारी पूजा-पाठ करता था। उस पुजारी के पास अपना एक हाथी था, जिसे वो अपने साथ रोज़ मंदिर लेकर जाता था। सभी गाँव के लोग हाथी को बहुत पसंद करते थे। हाथी भी मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं का खूब स्वागत-सत्कार किया करता था। सुबह पूजा-पाठ ख़त्म करने के बाद पुजारी अपने हाथी को नहलाने के लिए तालाब में लेकर जाता था। रोज़ हाथी तालाब में नहाने के बाद घर लौटते समय दर्ज़ी की दुकान पर रुकता था। दर्ज़ी भी रोज हाथी को प्यार से एक केला खाने को देता। हाथी केला खाने के बाद अपनी सूँड से दर्ज़ी को नमस्ते करके पुजारी के साथ घर चला जाता था। ये सब हाथी और पुजारी की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का एक हिस्सा था। एक दिन हाथी जब दर्ज़ी की दुकान पर केला खाने के लिए रुका, तो दर्ज़ी को शरारत करने का दिल हुआ। उसने हाथी को केला देने के बाद अपने हाथ में सुई रख ली। जैसे ही हाथी ने उसे नमस्ते किया, दर्ज़ी ने उसकी सूँड पर सुई चुभा दी। सुई चुभते ही हाथी ज़ोर से चिंघाड़ते हुए करहाने लगा। दर्ज़ी ने हाथी के दर्द का खूब मज़ाक़ उड़ाया और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। पुजारी को पता नहीं चला कि क्या हुआ। वो हाथी को सहलाते हुए अपने घर लेकर चला गया। अगले दिन फिर पुजारी और हाथी तालाब से लौटकर आ रहे थे। पुजारी कुछ दूर रुककर लोगों से बात करने लगा। हाथी रोज़ की तरह दर्ज़ी की दुकान पर रुक गया। आज हाथी ने अपने सूँड में कीचड़ भर लिया था। दर्ज़ी अपनी दुकान में बैठकर कपड़ों की सिलाई कर रहा था। जैसे ही हाथी ने दर्ज़ी को देखा, वैसे ही हाथी ने उसकी पूरी दुकान पर कीचड़ फेंक दिया। उस कीचड़ में दर्ज़ी तो भीगा ही, बल्कि उसकी दुकान के सीले हुए कपड़े भी ख़राब हो गए। इस सबसे दर्ज़ी समझ गया कि मैंने कल जो किया था, उसी का दण्ड हाथी ने मुझे आज दिया है। दर्ज़ी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो हाथी के पास भागकर गया। उसने हाथी से माफ़ी माँगने की कोशिश की। उसने कहा, “हे गजराज, आपने बिल्कुल सही किया। मैंने जो कल किया था, उसका नतीजा यही होना चाहिए।” हाथी ने दर्ज़ी की तरफ देखा और अपनी सूँड को हवा में लहराते हुए वहाँ से चला गया। दर्ज़ी को मन-ही-मन बहुत बुरा लग रहा था। उसने अपने मज़ाक़-मस्ती के चक्कर में एक अच्छा दोस्त हाथी खो दिया था। उस दिन से दर्ज़ी ने ठान ली कि वो किसी को भी मज़ाक़ में भी नुक़सान नहीं पहुँचाएगा।
कहानी से सीख: दर्ज़ी और हाथी की कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी के साथ भी बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। मज़ाक़ में भी नहीं।
10 नैतिक कहानियां हिंदी में
1. चींटी और कबूतर की कहानी
एक बार कड़कती गर्मियों में एक चींटी को बहुत प्यास लगी हुई थी। वो पानी की तलाश में एक नदी किनारे पहुंच गयी। नदी में पानी पीने के लिए वो एक छोटी सी चट्टान पर चढ़ गयी और वहां पर वो फिसल गयी और फिसलते हुए नदी में जा गिरी। पानी का वहाव ज्यादा तेज़ होने से वो नदी में बहने लगी। पास ही में एक पेड़ पर कबूतर बैठा हुआ था। उसने चींटी को नदी में गिरते हुए देख लिया। कबूतर ने जल्दी से एक पत्ता तोडा और नदी में चींटी के पास फेंक दिया और चींटी उसपर चढ़ गयी। कुछ देर बाद चींटी किनारे लगी और वह पत्ते से उतर कर सूखी जमीं पर आ गयी। उसने पेड़ की तरफ देख और कबूतर को धन्यबाद दिया। शाम को उसी दिन एक शिकारी जाल लेके कबूतर को पकड़ने आया। कबूतर पेड़ पर आराम कर रहा था और उसको शिकारी के आने का कोई अंदाजा नहीं था। चींटी ने शिकारी को देख लिया और जल्दी से पास जाके उसके पॉंव पर जोर से काटा। चींटी के काटने पर शिकारी की चीख निकल गयी और कबूतर जाग गया और उड़ गया।
नैतिक शिक्षा: कर भला हो भला। अगर आप अच्छा करोगे तो आपके साथ भी अच्छा होगा।
2. किसान और सांप की कहानी
एक बार एक किसान सर्दियों के दिनों में अपने खेतों में से गुज़र रहा था। तभी उसकी नज़र एक ठंड में सिकुड़ते हुए सांप पर पड़ी। किसान को पता था की सांप बहुत ही खतरनाक जीव है लेकिन फिर भी उसने उसे उठाया और अपनी टोकरी में रख लिया।एक बार एक किसान सर्दियों के दिनों में अपने खेतों में से गुज़र रहा था। तभी उसकी नज़र एक ठंड में सिकुड़ते हुए सांप पर पड़ी। फिर उसके ऊपर उनसे घास और पत्ते दाल दिए ताकि उसे कुछ गर्मी मिल जाए और वो ठण्ड की वजह से मरने से बच जाये। जल्द ही सांप ठीक हो गया और उसने टोकरी से निकल कर उस किसान को काट लिया जिसने उसकी इतनी मदद की थी। उसके जहर से तुरंत ही उसकी मौत हो गयी और मरते मरते उसने अपनी आखिरी साँस में यही कहा “मुझसे ये सीख लो, की कभी किसी दुष्ट (बुरे, नीच) पर दया न करो”।
नैतिक शिक्षा: कुछ लोग ऐसे होते हैं की जो अपने स्वभाव को कभी नहीं बदलते हैं, फिर चाहे हम उनके साथ कितना भी अच्छा व्यवहार करें। हमेशा उन लोगों से सावधान रहें और उनसे दूरी बनाए रखें जो केवल अपने फायदे के बारे में सोचते हैं।
3. भेड़िया और सारस की कहानी
एक बार एक भेड़िया किसी जानवर को खा रहा था और जल्दबाज़ी में खाते हुए उसके गले में एक हड्डी फस जाती है। काफी कोशिशें करने के बाद भी वो हड्डी उसके गले से नहीं निकलती। अब वो एक बुरी स्थिति में फस चुका था। तभी उसको एक सारस दिखा और उसकी लम्बी चोंच दिखी। उसको देखते उसको एक सुझाव् आया की सारस उसकी मदद कर सकता है। वो मदद के लिए सारस के पास गया। उसने सारस से कहा की वो उसकी मदद करे बदले में उसे वो उसका इनाम देगा। पहले तो सारस घबराया की भेड़िये के मुँह में अपनी चोंच डालके निकलने से उसको कोई नुक्सान न हो पर भेड़िये के इनाम देने के लालच में उसने हाँ कर दी। क्रेन ने जल्द ही हड्डी उसके गले से निकल दी। हड्डी निकलते ही भेड़िया चलने लग पड़ा तो सारस ने कहा, मेरा इनाम? तो भेड़िये ने कहा की,” क्या यह काफी नहीं है कि मैंने तुम्हारा सिर को बिना काटे ही अपने मुँह से बाहर निकालने दिया, यही तुम्हारा इनाम है”।
नैतिक शिक्षा: जिसको कोई आत्मसम्मान नहीं है उसकी सहायता करने के लिए किसी पुरस्कार की अपेक्षा ना करें। स्वार्थी लोगों के साथ रहने से आपको किसी प्रकार की मदद नहीं मिलेगी।
4. लोमड़ी और बकरी की कहानी
एक बार एक लोमड़ी रात को जंगल में घूम रही थी की अचानक वो एक कुँए में जा गिरी। अब उसे समझ नहीं आ रहा था की वो करे तो क्या करे। इस लिए उसने सुबह तक का इंतज़ार करने का सोचा। सुबह होते ही एक बकरी कुँए के पास से गुज़री और उसने लोमड़ी को देखा और कहा तुम कुँए में क्या कर रही हो ? तो बकरी ने कहा की,” में यहाँ पानी पीने आयी हूँ और ये पानी आजतक का सबसे स्वादिष्ट पानी है, आओ तुम भी पी के देखो?” बकरी ने बिना सोचे ही कुँए में छलांग लगा दी। थोड़ी देर पानी पीने के बाद बकरी ने बाहर जाने का सोचा तो देखा की वो वहां फंस चुकी है। अब लोमड़ी ने कहा की में तुम्हारे ऊपर चढ़ कर बाहर निकल जाता हूँ और किसी को मदद के लिए ले आऊंगा। बेचारी भोली बकरी ने लोमड़ी की चाल नहीं समझी और बिना सोचे समझे हाँ कर दी। अब लोमड़ी बाहर निकलते ही बकरी को बोलने लगी की,”अगर तुम इतनी भी समझदार होती तो कभी बिना समझे कुँए में नहीं आती और ऐसे नहीं फस्ती और लोमड़ी ये बोलके वहां से चली गयी।”
नैतिक शिक्षा: कोई भी निर्णय लेने से पहले सोचें। बिना सोचे समझे कोई फैसला ना लें।
5. गर्म पानी में मेंढक की कहानी
एक बार एक मेंढक गर्म पानी के बर्तन में गिर जाता है। वह वर्तन आग पर रखे होने की वजह से और गरम होने लगता है। मेंढक तब बहार निकलने की जगह अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित कर के उसमें बैठा रहता है की वो बाद में निकल जायेगा। पर वर्तन का पानी उबलने लगता है और मेंढ़क से अब तापमान सहन नहीं होता और वो बाहर निकलने की कोशिश में अंदर ही मर जाता है।
नैतिक शिक्षा: हम सबको परिस्थियों के अनुसार ढालना पड़ता है परन्तु कई बार जिन परिस्थियों में ज्यादा उलझने लगें तो उनसे सही समय पर बहार निकलने में ही भलाई होती है।
6. शेर और चूहे की कहानी
एक बार एक शेर सो रहा होता है और एक चूहा उसके ऊपर चढ़ के उसकी नींद को भटका देता है। शेर उसे गुस्से में पकड़ लेता है और उसे खाने लगता है पर चूहा उसे कहता है की, “आप अगर मुझे छोड़ दोगे तो में आपकी किसी दिन मदद जरूर करूँगा।” यह सुनके शेर हँसता है और उसे छोड़ देता है। कुछ दिन बाद कुछ शिकारी शेर को जाल में कैद कर लेते हैं और शेर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगता है उसकी आवाज़ चूहा पहचान लेता है और भागता हुआ उसके पास आता है और शेर के जाल को काट के शेर को आज़ाद कर देता है।
नैतिक शिक्षा: दया अपना इनाम ज़रूर लाती है, कोई इतना छोटा नहीं है कि यह वह मदद नहीं कर सकता।
7. शेर और चूहे की कहानी
एक दिन एक बूढ़ा आदमी पार्क में घूम रहा था की तभी उसकी नज़र एक छोटी सी बिल्ली पर पड़ी जोकि एक सुराख में फंस गयी थी। तब उस बूढ़े आदमी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बिल्ली को निकलने की कोशिश करने लगा, परन्तु बिल्ले ने उसे पंजा मारा और उसे पास नहीं आने दिया।आदमी ने फिर से वैसा ही किया और बिल्ली ने फिर उसे पास नहीं आने दिया। अब आदमी बार बार ये करने करने लगा और बिल्ली भी उसे बार बार हटा रही थी। पास खड़ा एक लड़का काफी देर से देख रहा था और वो चिल्ला पड़ा की आप बिल्ली को वहीँ रहने दो ये खुद ही निकल आएगी। पर उस आदमी ने कोई ध्यान नहीं दिया और वो कोशिश करता रहा और आखिरकार बिल्ली बहार आ ही गयी। अब बूढ़ा आदमी उस आदमी की और गया और बोला,”ये इस बिल्ली की फितरत है की ये काटेगी, पंजा मारेगी, जैसा की इसे भगवान ने बनाया है। पर ये हमारा फ़र्ज़ है की इनको प्यार देना और इनकी देखभाल करना।”
नैतिक शिक्षा: अपने आसपास सभी के साथ नैतिकता के साथ व्यवहार करें। आप सबसे ऐसा व्यवहार करें जैसा की आप दूसरों से खुद के लिए चाहते हो।
8. यात्री और सादा पेड़ की कहानी
तेज़ गर्मियों की दोपहर को दो यात्री चले जा रहे थे, तभी उन्हें एक बहुत बड़ा और घना पेड़ दिखाई दिया। वो दोनों उस पेड़ की छांव में धुप से बचने के लिए बैठ गए। आराम करते हुए उनमें से एक यात्री बोला ये पेड़ बहुत ही बेकार है। इसमें कोई भी फल नहीं लगा हुआ है, बहुत ही बेकार पेड़ है ये। तभी पेड़ से एक आवाज़ आयी,”इतना एहसान फरामोश ना बनो। इस क्षण में तुम्हारे लिए बहुत ही फायदेमंद हूँ। तम्हे कड़कती धूप से बचा रहा हूँ और तुम मुझे बेकार कहे जा रहे हो?”
नैतिक शिक्षा: प्रकृति की बनाई हुई हर चीज़ का कोई ना कोई महत्त्व है इस लिए किसी भी चीज़ को बेकार ना समझें। बनाई हुई हर चीज़ का कोई ना कोई महत्त्व है इस लिए किसी भी चीज़ को बेकार ना समझें।
9. साधू की झोपड़ी
किसी गाँव में दो साधू रहते थे. वे दिन भर भीख माँगते थे और मंदिर में पूजा करते थे. एक दिन गाँव में आँधी आ गयी और बहुत जोरों की बारिश होने लगी दोनों गांव की सीमा से लगी एक झोपड़ी में रहते थे. शाम को जब दोनों वापस लौटे तो देखा कि आँधी तूफान के कारण उनकी झोपडी टूट गयी है,यह देखकर पहला साधू क्रोधित हो उठता है और बुदबुदाने लगता है – भगवान तू मेरे साथ हमेशा ही गलत करता है. मै दिन-भर तेरा नाम लेता हूँ. मंदिर में तेरी पूजा करता हूँ फिर भी तूने मेरी झोपड़ी तोड़ दी. गाँव में चोर-लुटेरे, झूठे लोगों के तो मकानो को कुछ नहीं हुआ. बेचारे हम साधुओं की झोपडी ही तूने तोड दी. ये तेरा काम है. हम तेरा नाम जपते है पर तू हमसे प्रेम नही करता,तभी दूसरा साधु आता है और झोपड़ी को देखकर खुश हो जाता है. नाचने लगता है और कहता है कि भगवान आज विश्वास हो गया तू हमसे कितना प्रेम करता है, ये हमारी आधी झोपड़ी तूने ही बचाई होगी. वरना इतनी तेज आँधी में हमारी झोपड़ी कैसे बचती. ये तेरी ही कृपा है कि अभी भी हमारे पास सर ढकने के लिए जगह है. निश्चित ही ये मेरी पूजा का फल है. कल से मैं तेरी और पूजा करूँगा. मेरा तुझ पर विश्वास अब और बढ़ गया है|
नैतिक शिक्षा: चाहे कितनी भी गम्भीर परिस्थिति हो हमें नकारात्मक सोच नहीं रखनी चाहिए|
10. बड़ों का कहना मानो
बहुत समय पहले की बात है. एक जंगल में तोतों का एक झुंड रहता था सभी तोते अपने मुखिया की बात मानते थे. एक दिन मुखिया तोते ने अपने सभी छोटे तोतों को समझाया तुम सभी किसी भी बगीचे में जाना, परंतु अमरूद के बगीचे में मत जाना. सभी तोतों को मुखिया तोते की बात समझ में आ गई, परंतु एक तोता मुखिया की बात नहीं समझा वह बोला – मुखिया जी, हम अमरूद के बगीचे में क्यों नहीं जा सकते? मुखिया तोते ने जवाब दिया – उस बगीचे में एक शिकारी है, तुम उसके जाल में फँस जाओगे. तोते ने कहा – पर उस बगीचे में बहुत मीठे अमरूद होते हैं, ऐसे अमरूद किसी बगीचे में नहीं मिलेंगे. मुखिया तोते ने कहा – मीठे फल धरती पर गिरे होते हैं, शिकारी यह बात जानता है जैसे ही तुम मीठे फल खाने के लिए उस बगीचे में जाओगे, शिकारी तुम्हें अपने फैलाए हुए जाल में फँसा लेगा. परंतु उस तोते ने मुखिया तोते की बात नहीं मानी. वह मीठे अमरूदों का स्वाद चखने की ठान चुका था. अतः एक दिन वह अमरूद के बगीचे की तरफ उड़ गया. उसने वहाँ पहुँचकर जैसे ही अमरूद पर अपनी चोंच गड़ाई तभी एक जाल उसके ऊपर गिर पड़ा और वह फँस गया. शिकारी उस तोते को पिंजरे में बंद करके अपने घर ले गया, यदि वह तोता मुखिया तोते की बात मान लेता तो जाल में नहीं फँसता और न ही पिंजरे में बंद होता. इस प्रकार मुखिया तोते की बात न मानकर वह तोता कैदी बन गया.
नैतिक शिक्षा: हमें हमेशा अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिए क्योंकि बड़े ही हमें सही रास्ता दिखाते हैं.
आशा करते हैं कि आपको 10 शीर्ष कहानियां हिंदी में का ब्लॉग अच्छा लगा होगा। ऐसे ही ब्लॉग्स पढ़ने के लिए जानकारियां पर बने रहिए।