भगवान विष्णु की जय जगदीश हरे आरती सभी आरतियों में सबसे ज्यादा प्रचलित है। इस आरती के जरिये भक्त भगवान से कामना करते हैं कि उनके विषय-विकारों को विष्णु भगवान दूर करें। विष्णु अंतरयामी हैं और वह अपने भक्तों पर माता-पिता की तरह कृपा करें यह कामना भी आरती में की जाती है। इसलिए भक्तों को विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धापूर्वक पूजा अवश्य करनी चाहिए। उनकी इस आरती के पाठ से व्यक्ति को आत्मज्ञान भी होता है इसलिए यह आरती बहुत शुभ मानी जाती है। इसके रचयिता श्रद्धा राम फिल्लौरी थे। जो भी जातक इनकी आराधना करता है उसे सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है और कष्टों से छुटकारा मिलाता है।
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥ॐ जय जगदीश हरे॥
जो ध्यावे फल पावे,
दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥ॐ जय जगदीश हरे॥
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता ॥ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥ॐ जय जगदीश हरे॥
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥ॐ जय जगदीश हरे॥
विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥ॐ जय जगदीश हरे॥