भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। देश के स्वाधीनता क्रांति में एक महत्वपूर्ण नायक हैं। वो कई क्रन्तिकारी संगठनों के साथ मिले और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। उनका जन्म 27 सितंबर, 1907 को सिख परिवार में लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है जो पंजाब, भारत में है।
उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिंधु, माता का नाम श्रीमती विद्यावती जी और चाचा का नाम अजित सिंह था। इनके चाचा अजित सिंह बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी, इसमें उनके साथ सैयद हैदर रजा थे। अजित सिंह के खिलाफ 22 केस दर्ज थे, जिससे बचने के लिए उन्हें ईरान जाना पड़ा।
उन्होंने ने अपनी 5वीं तक की पढाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बाद में नेशनल कॉलेज BA की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भाग लेने लगे गांधीजी विदेशी चीजों का बहिष्कार करते थे।
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) ज्वाइन कर ली, जो एक मौलिक पार्टी थी, जिसे चन्द्रशेखर आजाद ने बनाया था। पूरी पार्टी ने साथ में मिलकर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आये, सइमन कमीशन का विरोध किया, जिसमें उनके साथ लाला लाजपत राय भी थे। “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन में ही खड़े रहे। जिसके बाद वहां लाठी चार्ज कर दिया गया, जिसमें लाला जी बुरी तरह घायल हुए और फिर उनकी म्रत्यु हो गई।
लाला लाजपत राय की मृत्यु से भगत सिंह और उनके पार्टी को गहरा झटका लगा। अंग्रेजों से बदला लेने की ठान ली और फिर उन्होंने अंग्रेजों को मारने का प्लान बनाया। उन्होंने अंग्रेजी पुलिस अधिकारी स्काट को मारने का प्लान बनाया लेकिन गलती से उन्होंने अस्सिस्टेंट पुलिस सौंदर्स को मार डाला था। इस कारण अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह लाहौर चले गए।
भगत सिंह कहते थे अंग्रेज बहरे हो गए, उन्हें ऊँचा सुनाई देता है, जिसके लिए बड़ा धमाका जरुरी है। 8 अप्रैल 1929 उन्होंने अपने साथी क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की असेंबली में बम विस्फोट कर दिया उस बम से के केवल आवाजही होती थी और उसे खाली स्थान पर पर ही फेका गया ताकि किसी को हानि ना हो। इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते रहे।
उन्होंने अंग्रेजों और भारत के लोगों को दिखाना चाहते थे कि एक हिंदुस्तानी क्या क्या कर सकता है भगत सिंह जी अपने आप को एक शहीद बताया करते थे और उनके देश प्रेम को देख कर यह साबित हुआ कि वे एक क्रांतिकारी थे और उनकी मृत्यु वह मरे नहीं बल्कि अमर शहीद हो जाएंगे भगत सिंह राजगुरु सुखदेव पर मुकदमा चला उन्होंने फांसी की सजा सुनाई गई।
1930 में भगत जी ने Why I Am Atheist नाम की किताब लिखी।
24 मार्च 1931 फांसी दी जानी थी। लेकिन देश के लोगों ने उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। इसके चलते ब्रिटिश सरकार को डर लगने लगा कि अगर भगत सिंह को रिहा कर दिया गया तो वे सरकार को जिंदा नहीं छोड़ेंगे लिए 23 मार्च 1931 की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव ,राजगुरु को फांसी दे दी गई। जाने से पहले वे लेनिन जीवनी पढ़ रहे थे।
लेखक भी थे भगत सिंह
भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया।
उनकी मुख्य कृतियां हैं, ‘एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादक: चमन लाल)।